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White अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय #डॉ_विवेक_आर

White अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय

#डॉ_विवेक_आर्य

(बंसत पंचमी को वीर हकीकत राय के बलिदान दिवस पर विशेष रूप से प्रकाशित)
पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719  में जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। बड़े होने पर आपको उस समय कि परम्परा के अनुसार फारसी पढ़ने के लिये मौलवी के पास मस्जिद में भेजा गया। वहाँ के कुछ शरारती मुस्लमान बालकों ने हिन्‍दू बालको तथा हिन्‍दू देवी देवताओं को अपशब्‍द कहते रहते थे। बालक हकीकत उन सब के कुतर्को का प्रतिवाद करता और उन मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद मे पराजित कर देता। एक दिन मौलवी की अनुपस्तिथी मे मुस्लिम छात्रों ने हकीकत राय को खूब मारा पीटा। बाद मे मौलवी के आने पर उन्‍होने हकीकत की शिकायत कर दी कि उन्होंने मौलवी के यह कहकर कान भर दिए कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। यह सुनकर मौलवी नाराज हो गया और हकीकत राय को शहर के काजी के सामने प्रस्‍तुत कर दिया। बालक के परिजनो के द्वारा लाख सही बात बताने के बाद भी काजी ने एक न सुनी और  शरिया के अनुसार दो निर्णय सुनाये एक था एक था सजा-ए-मौत है या दूसरा था इस्लाम स्वीकार कर मुसलमान बन जाना ।माता पिता व सगे सम्‍बन्धियों ने हकीकत को प्राण बचाने के लिए मुसलमान बन जाने को कहा मगर धर्मवीर बालक अपने निश्‍चय पर अडि़ग रहा और बंसत पंचमी २० जनवरी सन 1734 को जल्‍लादों ने 12 वर्ष के निरीह बालक का सर कलम कर दिया। वीर हकीकत राय अपने धर्म और अपने स्वाभिमान के लिए बलिदानी हो गया।और जाते जाते इस हिन्दू कौम को अपना सन्देश दे गया। वीर हकीकत कि समाधी उनके बलिदान स्थल पर बनाई गई जिस पर हर वर्ष उनकी स्मृति में मेला लगता रहा।  
1947 के बाद यह भाग पाकिस्तान में चला गया परन्तु उसकी स्मृति को अमर कर उससे हिन्दू जाति को सन्देश देने के लिए डा. गोकुल चाँद नारंग ने उनका स्मारक यहाँ पर बनाने का आग्रह अपनी कविता के माध्यम से इस प्रकार से किया हैं। 
हकीकत को फिर ले गए कत्लगाह में हजारों इकठ्ठे हुए लोग राह में|
चले साथ उसके सभी कत्लगाह को हुयी सख्त तकलीफ शाही सिपाह को|
किया कत्लगाह पर सिपाहियों ने डेरा हुआ सबकी आँखों के आगे अँधेरा|
जो जल्लाद ने तेग अपनी उठाई हकीकत ने खुद अपनी गर्दन झुकाई|
फिर एक वार जालिम ने ऐसा लगाया हकीकत के सर को जुदा कर गिराया|
उठा शोर इस कदर आहो फुंगा का के सदमे से फटा पर्दा आसमां का|
मची सख्त लाहौर में फिर दुहाई हकीकत की जय हिन्दुओं ने बुलाई|
बड़े प्रेम और श्रद्दा से उसको उठाया बड़ी शान से दाह उसका कराया|
तो श्रद्दा से उसकी समाधी बनायी वहां हर वर्ष उसकी बरसी मनाई|
वहां मेला हर साल लगता रहा है  दिया उस समाधि में जलता रहा है|
मगर मुल्क तकसीम जब से हुआ है  वहां पर बुरा हाल तबसे हुआ है|
वहां राज यवनों का फिर आ गया है  अँधेरा नए सर से फिर छा गया है|
अगर हिन्दुओं में है कुछ जान बाकी शहीदों बुजुर्गों की पहचान बाकी|
शहादत हकीकत की मत भूल जाएँ श्रद्दा से फुल उस पर अब भी चढ़ाएं|
कोई यादगार उसकी यहाँ पर बनायें  वहां मेला हर साल फिर से लगायें|

©अक़श #Thinking  motivational thoughts for students
White अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय

#डॉ_विवेक_आर्य

(बंसत पंचमी को वीर हकीकत राय के बलिदान दिवस पर विशेष रूप से प्रकाशित)
पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719  में जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। बड़े होने पर आपको उस समय कि परम्परा के अनुसार फारसी पढ़ने के लिये मौलवी के पास मस्जिद में भेजा गया। वहाँ के कुछ शरारती मुस्लमान बालकों ने हिन्‍दू बालको तथा हिन्‍दू देवी देवताओं को अपशब्‍द कहते रहते थे। बालक हकीकत उन सब के कुतर्को का प्रतिवाद करता और उन मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद मे पराजित कर देता। एक दिन मौलवी की अनुपस्तिथी मे मुस्लिम छात्रों ने हकीकत राय को खूब मारा पीटा। बाद मे मौलवी के आने पर उन्‍होने हकीकत की शिकायत कर दी कि उन्होंने मौलवी के यह कहकर कान भर दिए कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। यह सुनकर मौलवी नाराज हो गया और हकीकत राय को शहर के काजी के सामने प्रस्‍तुत कर दिया। बालक के परिजनो के द्वारा लाख सही बात बताने के बाद भी काजी ने एक न सुनी और  शरिया के अनुसार दो निर्णय सुनाये एक था एक था सजा-ए-मौत है या दूसरा था इस्लाम स्वीकार कर मुसलमान बन जाना ।माता पिता व सगे सम्‍बन्धियों ने हकीकत को प्राण बचाने के लिए मुसलमान बन जाने को कहा मगर धर्मवीर बालक अपने निश्‍चय पर अडि़ग रहा और बंसत पंचमी २० जनवरी सन 1734 को जल्‍लादों ने 12 वर्ष के निरीह बालक का सर कलम कर दिया। वीर हकीकत राय अपने धर्म और अपने स्वाभिमान के लिए बलिदानी हो गया।और जाते जाते इस हिन्दू कौम को अपना सन्देश दे गया। वीर हकीकत कि समाधी उनके बलिदान स्थल पर बनाई गई जिस पर हर वर्ष उनकी स्मृति में मेला लगता रहा।  
1947 के बाद यह भाग पाकिस्तान में चला गया परन्तु उसकी स्मृति को अमर कर उससे हिन्दू जाति को सन्देश देने के लिए डा. गोकुल चाँद नारंग ने उनका स्मारक यहाँ पर बनाने का आग्रह अपनी कविता के माध्यम से इस प्रकार से किया हैं। 
हकीकत को फिर ले गए कत्लगाह में हजारों इकठ्ठे हुए लोग राह में|
चले साथ उसके सभी कत्लगाह को हुयी सख्त तकलीफ शाही सिपाह को|
किया कत्लगाह पर सिपाहियों ने डेरा हुआ सबकी आँखों के आगे अँधेरा|
जो जल्लाद ने तेग अपनी उठाई हकीकत ने खुद अपनी गर्दन झुकाई|
फिर एक वार जालिम ने ऐसा लगाया हकीकत के सर को जुदा कर गिराया|
उठा शोर इस कदर आहो फुंगा का के सदमे से फटा पर्दा आसमां का|
मची सख्त लाहौर में फिर दुहाई हकीकत की जय हिन्दुओं ने बुलाई|
बड़े प्रेम और श्रद्दा से उसको उठाया बड़ी शान से दाह उसका कराया|
तो श्रद्दा से उसकी समाधी बनायी वहां हर वर्ष उसकी बरसी मनाई|
वहां मेला हर साल लगता रहा है  दिया उस समाधि में जलता रहा है|
मगर मुल्क तकसीम जब से हुआ है  वहां पर बुरा हाल तबसे हुआ है|
वहां राज यवनों का फिर आ गया है  अँधेरा नए सर से फिर छा गया है|
अगर हिन्दुओं में है कुछ जान बाकी शहीदों बुजुर्गों की पहचान बाकी|
शहादत हकीकत की मत भूल जाएँ श्रद्दा से फुल उस पर अब भी चढ़ाएं|
कोई यादगार उसकी यहाँ पर बनायें  वहां मेला हर साल फिर से लगायें|

©अक़श #Thinking  motivational thoughts for students
arunsaxena1385

अक़श

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