जब बीत गयी कारी रैना , जब निकल गए सब मेघ घने , जब सूख गया तिनका तिनका, जब रूठ गयी कोयल सारी, जब जलहीन हुईं सारी नदियां, जब कुचल गए मेरे मन के उगते नव कोंपल , जब मुझपे उड़ उड़ गर्म रेत गिरे, जब थी मैं प्यासी प्यासी सी, तब तो नहीं दिखे एक पल को भी... अब क्या शक्ल दिखाने आये हो ? तो सुनो....चले जाओ यहाँ से कुछ बचा नहीं मेरे बस में, देखो, सूख गया दुख में यौवन अब स्मृति शेष भी बचा नहीं, कभी गाती थी कोयलें यहाँ अब कुछ कौवे चिल्लाते हैं ... ठहरों नहीं , शीघ्र यहाँ से जाओ तुम.. क्या उजड़ा चमन फिर से बसाने आये हो ?????? या कोरम पूरा करने ?? या बस शक्ल दिखाने आये हो ? ... -नित्या #शक्ल दिखाने आये हो