कुण्डलिया :- आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान । करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।। मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी । करे नहीं परवाह , बने रिश्तों में दूरी ।। मान प्रखर की बात , न आये हाथ निराशा । करना है बेकार , सुनो जीवन में आशा ।।१ मतलब से अब फोन हो , मतलब से हो बात । मतलब जाते देख लो, बदलें हैं जज्बात ।। बदलें हैं जज्बात , यही इंसानी फितरत । फिर भी कहतें लोग , तुम्हीं से है बस चाहत ।। उन्हें बताये कौन , यही कहते हैं अब सब । आती है तब याद , पड़े जो कोई मतलब ।।२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान । करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।। मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी । करे नहीं परवाह , बने रिश्तों में दूरी ।। मान प्रखर की बात , न आये हाथ निराशा । करना है बेकार , सुनो जीवन में आशा ।।१