दया भाव से धरा वृक्ष का सिंचन खुद से करती है। जीवों के जीवन में प्राणवायु नित भरती है। आज वृक्ष के कटने से भूधर भी गुस्साएं हैं;हिम-शिला के खण्डों को अब तो वों पिघलाएं हैं। अम्बर दुःख से;अनियंत्रित वर्षा ऋतु ले आये हैं। सागर की लहरों को देखो वो तूफ़ान मचाएँ हैं। लौट रहें सब गाँवो में शहरों ने धुन्ध बिछाएं हैं। देखों सब वृक्षों को काट-काट कितना उत्पात मचाएँ हैं। वृक्ष क्यों लगाएँ??