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वीरान खण्डर सी नजर आती हैं अब मेरे गाँव की सभी इम

वीरान खण्डर सी नजर आती हैं 
अब मेरे गाँव की सभी इमारतें 
सब पलायन हुए यहां से शहर की तरफ 
यहाँ रह गए हैं कुछ बूढ़े , 
कुछ खेत और कुछ औरतें 
और रह गई है वो सुनसान सड़क 
जहाँ नही दिखता कोई दूर दूर तलक
सुनी है खेतो की पगडंडियाँ
सूनी– सूनी सी है वो नदियाँ
रही न अब वो बच्चो की शरारतें 
जहाँ जमघट लगती थी 
वो अब आम का बगीचा तो है
मगर टायरों के झूले नजर नही आते 
वो खिलखिलाती हँसी नजर नही आती आंगनों से 
आंगन में चूल्हा तो नजर आता है
मगर घर की औरतें नजर नही आती 
आती है बस रातों को झींगुरों की आबाज़
सन्नाटे का शोर 
और अकेले पन से चुभता ये घर 
✍️रिंकी
 
 वीरान खण्डर सी नजर आती हैं 
अब मेरे गाँव की सभी इमारतें 
सब पलायन हुए यहां से शहर की तरफ 
यहाँ रह गए हैं कुछ बूढ़े , 
कुछ खेत और कुछ औरतें 
और रह गई है वो सुनसान सड़क 
जहाँ नही दिखता कोई दूर दूर तलक
वीरान खण्डर सी नजर आती हैं 
अब मेरे गाँव की सभी इमारतें 
सब पलायन हुए यहां से शहर की तरफ 
यहाँ रह गए हैं कुछ बूढ़े , 
कुछ खेत और कुछ औरतें 
और रह गई है वो सुनसान सड़क 
जहाँ नही दिखता कोई दूर दूर तलक
सुनी है खेतो की पगडंडियाँ
सूनी– सूनी सी है वो नदियाँ
रही न अब वो बच्चो की शरारतें 
जहाँ जमघट लगती थी 
वो अब आम का बगीचा तो है
मगर टायरों के झूले नजर नही आते 
वो खिलखिलाती हँसी नजर नही आती आंगनों से 
आंगन में चूल्हा तो नजर आता है
मगर घर की औरतें नजर नही आती 
आती है बस रातों को झींगुरों की आबाज़
सन्नाटे का शोर 
और अकेले पन से चुभता ये घर 
✍️रिंकी
 
 वीरान खण्डर सी नजर आती हैं 
अब मेरे गाँव की सभी इमारतें 
सब पलायन हुए यहां से शहर की तरफ 
यहाँ रह गए हैं कुछ बूढ़े , 
कुछ खेत और कुछ औरतें 
और रह गई है वो सुनसान सड़क 
जहाँ नही दिखता कोई दूर दूर तलक