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*हास्य व्यंग्य कविता* जितना भी है लाओ लाओ! बजट खप

*हास्य व्यंग्य कविता*

जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

कोषागार ना मिलकर आया,आब्जेक्शन इसलिए लगाया, 
कितने चक्कर मुझे घुमाया,फिर बाबू ने सब समझाया,
भैया क्यों करते हो फाइट? ट्रेज़री इज आॅलवेज राइट,
उनकी बातें हरदम सच्ची, क्यों करते हो माथापच्ची,
सब होगा तुम मत घबराओ,कुछ हरियाली उन्हें दिखाओ,
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

ज़िन्दा है पर लिखा मरा है,फार्म सही से नहीं भरा है,
बाबू ज़िद पर वहीं अड़ा है,देखो खाली पड़ा घड़ा है,
राशन,पेंशन,राहत-वाहत सरकारी जुमले होते हैं,
बीज पौध मिट्टी पानी के बिना यहाँ गमले होते हैं।
बंजर पड़ी ज़मी पर साहब! ज़हरीला अमृत बरसाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

पेड़ लगे और ख़ाक भी हुए,फ़ाइल में अंदर ही अंदर,
पकड़ लिए दस्वावेजों में,शहर गांव के सारे बंदर,
गड्ढे,सड़कें पुलिया,रस्ते, हुए चकाचक सारे नाले,
वीसी मीटिंग में सब फिट है,सिस्टम है बस राम हवाले
ऊपर से फ़रमान नया है, चलो काम पर सब लग जाओ!
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

लम्बी लम्बी खूब डकारें,लंच पैक का होता भक्षण,
बैनर,सज्जा,कंटीजेन्सी,मीटिंगरैली और प्रशिक्षण,
बने सभी दफ़्तर के टीचर,आर.ओ.पी. व एक्सपेंडीचर,
भैया जल्दी डालो टेंडर,कल करना है बजट सरेंडर,
सौ से ही क्या होगा साहब! दो एक ज़ीरो और बढ़ाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

चौराहे मंदिर दफ़्तर में,शादी,मंचों या फिर घर में,
जो सिस्टम को गलियाते थे,भ्रष्टतंत्र पर समझाते थे,
अब उनके चेहरे खिल आए,नोटतंत्र पर ध्यान लगाए।
बड़ा पसीना गमछों पर है,ठेका अपने चमचों पर है।
जल्दी खेंचो और पिलाओ,जैसे तैसे काम बनाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

घर,बीबी,रिश्तेदारी में, कहीं लगे क्यों पागल ये मन?
मेरे हिस्से का चुपके से फिर साहब ले गए कमीशन।
अब फिर जब भर्ती आएंगी, टेंट उड़ा छाता दे दूंगा,
आवेदक को चालाकी से,मैं अपना खाता दे दूंगा।
काम बनाना है तो साहब, ऐसे मौके नहीं गवाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

कहाँ चले थोड़ा रूक जाओ!गाड़ी के काग़ज़ दिखलाओ,
पेपर गाड़ी सबकुछ फिट है,लेकिन हमको क्या प्रोफिट है?
टारगेट पूरा करना है,ऊंची बोली में मत बोलो!
कोर्ट से गाड़ी को छुड़वाओ या फिर अपनी जेब टटोलो,
बात हमारी मान गए तुम जाओ साहब! सीधे जाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

©mani naman best poem on corruption by mani naman

#CORRUPTIION भ्रष्टाचार
*हास्य व्यंग्य कविता*

जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

कोषागार ना मिलकर आया,आब्जेक्शन इसलिए लगाया, 
कितने चक्कर मुझे घुमाया,फिर बाबू ने सब समझाया,
भैया क्यों करते हो फाइट? ट्रेज़री इज आॅलवेज राइट,
उनकी बातें हरदम सच्ची, क्यों करते हो माथापच्ची,
सब होगा तुम मत घबराओ,कुछ हरियाली उन्हें दिखाओ,
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

ज़िन्दा है पर लिखा मरा है,फार्म सही से नहीं भरा है,
बाबू ज़िद पर वहीं अड़ा है,देखो खाली पड़ा घड़ा है,
राशन,पेंशन,राहत-वाहत सरकारी जुमले होते हैं,
बीज पौध मिट्टी पानी के बिना यहाँ गमले होते हैं।
बंजर पड़ी ज़मी पर साहब! ज़हरीला अमृत बरसाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

पेड़ लगे और ख़ाक भी हुए,फ़ाइल में अंदर ही अंदर,
पकड़ लिए दस्वावेजों में,शहर गांव के सारे बंदर,
गड्ढे,सड़कें पुलिया,रस्ते, हुए चकाचक सारे नाले,
वीसी मीटिंग में सब फिट है,सिस्टम है बस राम हवाले
ऊपर से फ़रमान नया है, चलो काम पर सब लग जाओ!
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

लम्बी लम्बी खूब डकारें,लंच पैक का होता भक्षण,
बैनर,सज्जा,कंटीजेन्सी,मीटिंगरैली और प्रशिक्षण,
बने सभी दफ़्तर के टीचर,आर.ओ.पी. व एक्सपेंडीचर,
भैया जल्दी डालो टेंडर,कल करना है बजट सरेंडर,
सौ से ही क्या होगा साहब! दो एक ज़ीरो और बढ़ाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

चौराहे मंदिर दफ़्तर में,शादी,मंचों या फिर घर में,
जो सिस्टम को गलियाते थे,भ्रष्टतंत्र पर समझाते थे,
अब उनके चेहरे खिल आए,नोटतंत्र पर ध्यान लगाए।
बड़ा पसीना गमछों पर है,ठेका अपने चमचों पर है।
जल्दी खेंचो और पिलाओ,जैसे तैसे काम बनाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

घर,बीबी,रिश्तेदारी में, कहीं लगे क्यों पागल ये मन?
मेरे हिस्से का चुपके से फिर साहब ले गए कमीशन।
अब फिर जब भर्ती आएंगी, टेंट उड़ा छाता दे दूंगा,
आवेदक को चालाकी से,मैं अपना खाता दे दूंगा।
काम बनाना है तो साहब, ऐसे मौके नहीं गवाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

कहाँ चले थोड़ा रूक जाओ!गाड़ी के काग़ज़ दिखलाओ,
पेपर गाड़ी सबकुछ फिट है,लेकिन हमको क्या प्रोफिट है?
टारगेट पूरा करना है,ऊंची बोली में मत बोलो!
कोर्ट से गाड़ी को छुड़वाओ या फिर अपनी जेब टटोलो,
बात हमारी मान गए तुम जाओ साहब! सीधे जाओ।
जितना भी है लाओ लाओ! बजट खपाओ बजट खपाओ........

©mani naman best poem on corruption by mani naman

#CORRUPTIION भ्रष्टाचार
maninaman0391

mani naman

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