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पत्ते भी अब पावों के नीचे से खिसकने लगे हैं रात म

पत्ते भी अब  पावों के नीचे से खिसकने लगे हैं
रात में चांद और तारे छुपकर सिसकने लगे है

ये जो लगता है तुझे ये ओस की बुंदे पत्तो पे हैं
है मेरे आंसू आसमा से रीस रीसकर गिरने लगे हैं 
 
दोस्तों से शिकवा कैसा अपनों से कैसा गिला 
दुश्मन भी जब नजरें चुराकर मुझसे बचने लगे हैं

अंजान राहों से गुजरना अच्छा नहीं लगता मुझे
 जो राह बरसों की है वो हर कदम डसने लगै हैं

अरे दर्द से कह दो ज़रा कुछ तो मोहलत दे मुझे
रात-दिन आठो पहर आह मुझसे चिमटने लगे है

काश! कोई  "क़मर" मेरी ख़बर उसको भी दे
जिसका ग़म जान मेरी हर घड़ी लेने लगे हैं

©Qamar Abbas #HeartBreak2
पत्ते भी अब  पावों के नीचे से खिसकने लगे हैं
रात में चांद और तारे छुपकर सिसकने लगे है

ये जो लगता है तुझे ये ओस की बुंदे पत्तो पे हैं
है मेरे आंसू आसमा से रीस रीसकर गिरने लगे हैं 
 
दोस्तों से शिकवा कैसा अपनों से कैसा गिला 
दुश्मन भी जब नजरें चुराकर मुझसे बचने लगे हैं

अंजान राहों से गुजरना अच्छा नहीं लगता मुझे
 जो राह बरसों की है वो हर कदम डसने लगै हैं

अरे दर्द से कह दो ज़रा कुछ तो मोहलत दे मुझे
रात-दिन आठो पहर आह मुझसे चिमटने लगे है

काश! कोई  "क़मर" मेरी ख़बर उसको भी दे
जिसका ग़म जान मेरी हर घड़ी लेने लगे हैं

©Qamar Abbas #HeartBreak2
kaajukala1866

Qamar Abbas

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