प्रेम को परिभाषित करने की कितनी भी चेष्टा कर ली जाय उसकी व्यख्या या समीक्षा करना सम्भव नहीं है क्योंकि यह प्रेम शब्दों का नहीं जज्बातों का मोहताज़ है और जज्बात वाणी का नहीं ह्रदय का सम्राट है प्रेम की परिभाषा......