कश्तियां बच जाती हैं तूफान में हस्तियां मिट जाती हैं अभिमान में बाहर रिश्तों का मेला है और अन्दर से हर सख्श अकेला है ये रिश्तों का नहीं ... ये "वक़्त"और "ज़िन्दगी" का खेला है । #सख्त वक्त