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मैं जितना सुबह से शाम भीड़ में रहता, उतना ही रात

मैं जितना सुबह से शाम भीड़ में रहता, 
उतना ही रात मुझे तन्हा कर जाती है।
सूरज तो छोड़ जाता ही है।
चांद-तारे भी अकेले कर जाते है।
यह पत्थर मुझे दूसरों से कहीं ज्यादा अपना लगता।

©मुसाफिर
  #तन्हा