ये जहाँ ग़र पाओगे भी तो क्या पाओगे ग़र दोस्त को दुश्मन बना पाओगे पूरे क़ायनात पर होगा हुक़ूमत तुम्हारा मग़र ज़मीर तुम अपना मरा पाओगे वो ऊँचाई ग़र हासिल हो जाए तो सोचना अब तुम सिर्फ ख़ुद को गिरा पाओगे होगा तुम्हारे सिर पर राजाओं सा मुकुट पर क्या खुद से नज़रे मिला पाओगे वो सीढिया जो तुम्हें ऊँचाई तक ले गयी रो दोगे ग़र वो कंधे झुका पाओगे क़ादिर बनने की ज़द्दोज़हद में हो ख़ुदा बन जाओगे ग़र इंसानियत निभा पाओगे ©क्षत्रियंकेश मुकुट!