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|| संवेदना की वेदना || #Night || संवेदना

|| संवेदना की वेदना || #Night         ||  संवेदना की वेदना ||
वे लोग सीमा पर सुरक्षा में तैनात नहीं थें इसलिए वो शहीद नहीं कहलाएंगे, न ही कोई नेता या नामी हस्ती थे। उनके लिए कोई श्रद्धांजली अर्पित नहीं करेगा, कोई मोमबत्ती जलाकर शोक नहीं मनाएगा न ही उनके लिए कोई फण्ड रेजिंग करेगा। वो लोग वोटों की गिनती में भी शुमार नहीं होते इसलिए कोई खोज खबर नहीं रखी जाएगी । वो लोग ख़ुद के घर चलाने के लिए फैक्ट्रीयों में काम करते थे बस, राष्ट्र निर्माण में इनका योगदान गिना नहीं जाएगा। चाहे फैक्ट्रियों का विकास कई गुना ही हो जाए मजाल है कि इन लोगों का विकास रत्ती भर भी हो जाए। ये सिस्टम ऐसे ही चलता है, ऊपर बैठे लोग उन लोगों के जिंदगी का फैसला लेते हैं जिनकी जिंदगी, जिंदगी भर राम भरोसे चलती है। ये लोग हादसे में मर गए या सिस्टम के हाथों मार दिये गए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, फर्क इससे पड़ता है कि वो लोग जो रास्ते में ही रह गए उनका रस्ता कोई देख रहा होगा। उनके घर कुछ बच्चे होंगे जिनकी चीखें शहीदों के बच्चों की तरह ही होंगी पर उनको चुप कराने कोई 'देशभक्त' नही जाएगा। वंचित शोषित वर्गों से आने वाले ये लोग यूं ही जन्म लेंगे और मर जाएंगे बिना सिस्टम के रडार में आए, बिना देश के प्रगति में अपने योगदान का बखान किए। घटना दुखद थी ,बेहद दुखद थी पर इतनी कमजोर भी थी की सिस्टम को हिला न सकी, उनके जैसे और लोग फिर उसी राह पर चल पड़े हैं, वो सिस्टम से लड़ेंगें नहीं बस लड़ना तो अपनी किस्मत से है उनके मुकद्दर में। वो लड़ ना सकेंगे तो मरेंगे और मर ना सकेंगे तो लोकतंत्र में जा पीसेंगे या कहें पीस दिए जाएंगे।
ये ही तो उनके संवेदना की वेदना है जिसकी व्यथा किसी ह्रदय में समा नहीं सकती।।
|| संवेदना की वेदना || #Night         ||  संवेदना की वेदना ||
वे लोग सीमा पर सुरक्षा में तैनात नहीं थें इसलिए वो शहीद नहीं कहलाएंगे, न ही कोई नेता या नामी हस्ती थे। उनके लिए कोई श्रद्धांजली अर्पित नहीं करेगा, कोई मोमबत्ती जलाकर शोक नहीं मनाएगा न ही उनके लिए कोई फण्ड रेजिंग करेगा। वो लोग वोटों की गिनती में भी शुमार नहीं होते इसलिए कोई खोज खबर नहीं रखी जाएगी । वो लोग ख़ुद के घर चलाने के लिए फैक्ट्रीयों में काम करते थे बस, राष्ट्र निर्माण में इनका योगदान गिना नहीं जाएगा। चाहे फैक्ट्रियों का विकास कई गुना ही हो जाए मजाल है कि इन लोगों का विकास रत्ती भर भी हो जाए। ये सिस्टम ऐसे ही चलता है, ऊपर बैठे लोग उन लोगों के जिंदगी का फैसला लेते हैं जिनकी जिंदगी, जिंदगी भर राम भरोसे चलती है। ये लोग हादसे में मर गए या सिस्टम के हाथों मार दिये गए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, फर्क इससे पड़ता है कि वो लोग जो रास्ते में ही रह गए उनका रस्ता कोई देख रहा होगा। उनके घर कुछ बच्चे होंगे जिनकी चीखें शहीदों के बच्चों की तरह ही होंगी पर उनको चुप कराने कोई 'देशभक्त' नही जाएगा। वंचित शोषित वर्गों से आने वाले ये लोग यूं ही जन्म लेंगे और मर जाएंगे बिना सिस्टम के रडार में आए, बिना देश के प्रगति में अपने योगदान का बखान किए। घटना दुखद थी ,बेहद दुखद थी पर इतनी कमजोर भी थी की सिस्टम को हिला न सकी, उनके जैसे और लोग फिर उसी राह पर चल पड़े हैं, वो सिस्टम से लड़ेंगें नहीं बस लड़ना तो अपनी किस्मत से है उनके मुकद्दर में। वो लड़ ना सकेंगे तो मरेंगे और मर ना सकेंगे तो लोकतंत्र में जा पीसेंगे या कहें पीस दिए जाएंगे।
ये ही तो उनके संवेदना की वेदना है जिसकी व्यथा किसी ह्रदय में समा नहीं सकती।।
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