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हम अपने मन के भावों को लिखते हैं,लेकिन क्या सच मे

हम अपने मन के भावों को लिखते हैं,लेकिन 
क्या सच में हम पूरा सच लिख पाते हैं,या 

सिर्फ़ उन बातों को लिखते हैं,जिससे हमारी हक़ीक़त 
किसी मुखौटे के पीछे छुपी हुई रह जाती हैं 

क्या हम में वाकई इतनी ताक़त होती हैं,की हम 
अपने भावों को ज्यों का त्यों वर्णन कर सकें 

नहीं ,मुझे लगता है कि,हम अपने मन के धधकते लावे को ढक देते हैं 
और लिख डालते वो जिससे हमारी हक़ीक़त भी किसी पर्दे में छुपी रहें 

और सच में आसान नहीं होता है, ख़ुद के घावों को कुरेदना 
कहीं तो हो ,कभी तो हो जिस जगह इंसान बिना मुखौटे के रहें 

किसी और के लिए नहीं ,बस ख़ुद अपने को जानने के लिए 
हम लेखक हो कर भी हर बात कभी सांझा नहीं कर सकते हैं 

छोड़ देते है लिखना ,उन बातों को जिससे हम आहत होते हैं 
और लिख डालते हैं, अपनी अधूरी ,अनसुलझी मनोभाव को ।

©Sadhna Sarkar #ankahe_jazbat
हम अपने मन के भावों को लिखते हैं,लेकिन 
क्या सच में हम पूरा सच लिख पाते हैं,या 

सिर्फ़ उन बातों को लिखते हैं,जिससे हमारी हक़ीक़त 
किसी मुखौटे के पीछे छुपी हुई रह जाती हैं 

क्या हम में वाकई इतनी ताक़त होती हैं,की हम 
अपने भावों को ज्यों का त्यों वर्णन कर सकें 

नहीं ,मुझे लगता है कि,हम अपने मन के धधकते लावे को ढक देते हैं 
और लिख डालते वो जिससे हमारी हक़ीक़त भी किसी पर्दे में छुपी रहें 

और सच में आसान नहीं होता है, ख़ुद के घावों को कुरेदना 
कहीं तो हो ,कभी तो हो जिस जगह इंसान बिना मुखौटे के रहें 

किसी और के लिए नहीं ,बस ख़ुद अपने को जानने के लिए 
हम लेखक हो कर भी हर बात कभी सांझा नहीं कर सकते हैं 

छोड़ देते है लिखना ,उन बातों को जिससे हम आहत होते हैं 
और लिख डालते हैं, अपनी अधूरी ,अनसुलझी मनोभाव को ।

©Sadhna Sarkar #ankahe_jazbat