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वो पिता है जिसकी मोहब्बत की जुबां नहीं होती, मैं क

वो पिता है जिसकी मोहब्बत की जुबां नहीं होती,
मैं क्या लिखूं मेरे कलम से उसकी तारीफें बयां नहीं होती,
खुद के पैर में फटे चप्पल और अपने बच्चों के लिए नए जूते,
बिना कुछ बोले जो पूरी कर दे बच्चों की जरूरतें,
इस स्वार्थ भरे जहां में में वो है निःस्वर्थता की मिसाल,
खुद की बदहाली में भी जो परिवार का न होने दे बुरा हाल,
हर मुहाल रास्तों पे मुझे हिदायत देना,
कड़ी धूप में भी मेरा साया बनना,
जिसके नाम में मेरी पूरी दुनियां हो,
पिता हो तो लगता है जैसे मेरे तन्हाई में भी मेरे साथ कारवां हो,
फकत परिवार की खुशी के लिए इतने दुःख झेलता है,
यूंही कोई इंसान पिता नहीं बनता है।

©Shivam Singh Rajput
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