महफिलों में बैठे कुछ गुनगुना रहा था, कि किसी ने पूछा, मैं क्या करता हूं? जवाब जो मिली उसे, लिखने के ऊपर, फिर उसने पूछा मैं क्या लिखता हूं? खड़े -खड़े मैंने सुनाया उन्हें - गर डूब जाऊं गहराई में, बस ख्वाब लिखता हूं। लिखने की है ललक मुझमें, कभी बंदिशें न हो गर, जज्बात लिखता हूं। मिलता जब दर्द मुझे, दर्द -ए -आवाज़ लिखता हूं। गर कोई कह दे कुछ लिखने को, फिर उस शख्स का ऐहसास लिखता हूं। अपनों के बीच में, अपनों का सौगात लिखता हूं। कभी -कभार अपने जीवन का प्यास लिखता हूं। हो गम या जुदाई, साथ -साथ लिखता हूं। पर प्यार भरे नगमें, बार - बार लिखता हूं। सुहाना हो मौसम गर, फिर मौसम-ए-बहार लिखता हूं। गज़ल न सही पर, गीत हर बार लिखता हूं। कोशिशें होती हमारी, लिख लूं जहान सारी, गर कोई मज़ाक भी उड़ाए, फिर भी हर बार लिखता हूं। लिखने की जो है ललक, इसीलिए बार-बार लिखता हूं।। हर बार लिखता हूं।। ©Kundan Kumar बार-बार लिखता हूं।। हर बार लिखता हूं।। like comment follow #poem #Instagram #Hindi #Love #writing #Quote #Quotes #quoteoftheday #hindipoetry