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प्रेम पूरित भावनाओं की लहर में रिक्तिका सी तुम हृद

प्रेम पूरित भावनाओं की लहर में
रिक्तिका सी तुम हृदय में बन रही हो !

ये मन न जाने कब तेरा संतृप्त होगा
स्वर्ण मृग की खोज अब भी कर रही हो !!

दृष्टि के दोनों धरातल हैं मगर तुम
बास्तविक को देख आभासी हुई हो !

दृश्य की उपलब्धता को आवरित कर
मृग-मरीची ढूंढती तुम फिऱ रही हो !! कर जतन ले योग विद्या के सहारे
मिल रहे हैं जैसे नद्य दौनों किनारे !

ब्रह्म-माया के भँवर में क्यों फसी हो
जान कर भी कर्म बंधन कर रही हो !!

सत्य का संधान जब तुम कर रही हो
है उचित-अनुचित में अंतर जान लोगी !
प्रेम पूरित भावनाओं की लहर में
रिक्तिका सी तुम हृदय में बन रही हो !

ये मन न जाने कब तेरा संतृप्त होगा
स्वर्ण मृग की खोज अब भी कर रही हो !!

दृष्टि के दोनों धरातल हैं मगर तुम
बास्तविक को देख आभासी हुई हो !

दृश्य की उपलब्धता को आवरित कर
मृग-मरीची ढूंढती तुम फिऱ रही हो !! कर जतन ले योग विद्या के सहारे
मिल रहे हैं जैसे नद्य दौनों किनारे !

ब्रह्म-माया के भँवर में क्यों फसी हो
जान कर भी कर्म बंधन कर रही हो !!

सत्य का संधान जब तुम कर रही हो
है उचित-अनुचित में अंतर जान लोगी !

कर जतन ले योग विद्या के सहारे मिल रहे हैं जैसे नद्य दौनों किनारे ! ब्रह्म-माया के भँवर में क्यों फसी हो जान कर भी कर्म बंधन कर रही हो !! सत्य का संधान जब तुम कर रही हो है उचित-अनुचित में अंतर जान लोगी ! #शिक्षा #पंछी #आध्यात्मिक #पाठक #हरे #जीवात्मा