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kavi Kaustubh 'Hruday'
इस जीवन से कुछ तो कहती है ©kavi Kaustubh 'Hruday' #जीवात्मा
Divyanshu Pathak
प्रेम पूरित भावनाओं की लहर में रिक्तिका सी तुम हृदय में बन रही हो ! ये मन न जाने कब तेरा संतृप्त होगा स्वर्ण मृग की खोज अब भी कर रही हो !! दृष्टि के दोनों धरातल हैं मगर तुम बास्तविक को देख आभासी हुई हो ! दृश्य की उपलब्धता को आवरित कर मृग-मरीची ढूंढती तुम फिऱ रही हो !! कर जतन ले योग विद्या के सहारे मिल रहे हैं जैसे नद्य दौनों किनारे ! ब्रह्म-माया के भँवर में क्यों फसी हो जान कर भी कर्म बंधन कर रही हो !! सत्य का संधान जब तुम कर रही हो है उचित-अनुचित में अंतर जान लोगी !
NarendrA ChauhaN
#RIPMilkhaSingh कहते हैं, ईश्क हो जिसे अपने मंजिल ए वतन से वो गिरकर भी कभी बिखरते नही दौड़ते है, थक कर कभी रुकते नहीं मरते है, मगर दिलो से मिटते नहीं... ©NarendrA ChauhaN #श्रद्धांजलि💐💐💐 #जीवात्मा #RIPMilkhaSingh #प्रेम vimlesh yadav Riya Soni Geet Sunendra Namrta vishwakarma Dr. Sonia shastri
श्रद्धांजलि💐💐💐 #जीवात्मा #RIPMilkhaSingh #प्रेम vimlesh yadav Riya Soni Geet Sunendra Namrta vishwakarma Dr. Sonia shastri #Life
read moreवेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। मनोमयः प्राणशरीरनेता प्रतिष्ठितोऽन्ने हृदयं सन्निधाय। तद् विज्ञानेन परिपश्यन्ति धीरा आनन्दरूपममृतं यद् विभाति ॥ वह मनोमय है, प्राण एवं शरीर का नेता है, जिसने जड़तत्त्व (अन्न) में हृदय को स्थापित कर दिया है, जो स्वयं जड़तत्त्व (अन्न) में सुप्रतिष्ठित है। उसे जानने से ज्ञानीजन (धीर पुरुष) अपने चारों ओर 'उस' (आत्मतत्त्व) का दर्शन करते हैं जिसकी ज्योति सर्वत्र भासित होती है, जो 'आनन्दरूप' एवं अमृत-स्वरूप है। A mental being, leader of the life and the body, has set a heart in matter, in matter he has taken his firm foundation. By its knowing the wise see everywhere around them That which shines in its effulgence, a shape of Bliss and immortal. ( मुण्डकोपनिषद् २.२.८ ) #मुण्डकोपनिषद् #upnishad #मन #जीवात्मा
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।। ओ३म् ।। कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्या। संयोग एषां न त्वात्मभावादात्माप्यनीशः सुखदुःखहेतोः॥ काल, प्रकृति, नियति, यदृच्छा, जड़-पदार्थ, प्राणी इनमें से कोई या इनका संयोग भी कारण नहीं हो सकता क्योंकि इनका भी अपना जन्म होता है, अपनी पहचान है और अपना अस्तित्व है। जीवात्मा भी कारण नहीं हो सकता, क्योंकि वह भी सुख-दुःख से मुक्त नहीं है। Time, nature, law, chance, matter, the living self - none of these surely is the cause; nor even the combination of these is the cause because of their own birth, identity and the existence of the self. The Self being under the sway of happiness and misery is not a free agent and thus not the cause. ( श्वेताश्वतरोपनिषद् १.२ ) #श्वेताश्वतरोपनिषद् #upnishad #Kal #dosh #sukh #dukh #जीवात्मा
shuny manthan
जीवात्मा अपना स्वयं का मित्र है और शत्रु भी। यह तो जीवात्मा को तय करना है कि वह स्वयं के लिए क्या चाहता है-पुनर्जन्म या इससे मुक्ति।
राजेन्द्र प्र०पासवान
गीत दया करो भाई दया करो जीवात्मा पर दया करो । पेड़_पौधे पँछी कीट_पतंग जीव-जंतु सबमें है जीवात्मा दया की नहीं है सीमा सबसे जो श्रेष्ठ है उसपर कुछ उपकार करो दया करो भाई दया करो जीवात्मा पर दया करो । #शब्द_खेल
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