रात के ये अंधेरे अब नहीं डराते हैं मुझे, इन्हीं काली काली रातों में ढूंढ़ा करती हूं में तुझे।। तुम्हें खोकर हमने जाना, दुनिया क्या चीज़ है, क्या होते हैं रिश्ते नाते, सब बहकावे की रीत है। ऐसे ऐसे पल देखें हैं, याद ना जिनको करना चाहे, खो गये है जो रास्ते,उन रास्तों पर ढूंढ़ा करती हूं में तुझे।। हर पल रंग बदलती है दुनिया, ये दुनिया के लोग भी, पल में बदलते है रिश्ते और रिश्तों की सोच भी। कल तक जो अपने थे, छुप छुप के निकलते हैं अब हमसे सूनी राहों में तन्हा बातों में, ढूंढ़ा करती हूं में तुझे।। ढूंढ़ा करतीं हूं में तुझे.....