आरजू का दम घुटा,सपने कुआंरे रह गये। पर हमारे पास कुछ ग़म तो तुम्हारे रह गये। कोई अपना अब नज़र से दूर है तो क्या हुआ, नम हुई पलकों में उसके सब नज़ारे रह गये। याद का तूफान यूं सब कुछ बहाकर ले गया, साहिले-दिल पर मगर कुछ अश्क़ खारे रह गये। लब लबालब थे हंसी से पर किसी को याद कर, मुस्कुराते-मुस्कुराते गम के मारे रह गये। बागबां ने फूल बोये थे बड़ी उम्मीद से, रख गई कांटे खिजां, अरमान सारे रह गये। करके यह ऐलान 'कल से चांद की हड़ताल है, हो गया आकाश चुप,सहमे सितारे रह गये। -कृष्ण गोपाल विद्यार्थी, बहादुरगढ़ ©KG V # कृष्ण गोपाल विद्यार्थी #beinghuman