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अगर रंग - बिरंगे  ये   नारे न होते। तो फिर हम भी इ

अगर रंग - बिरंगे  ये   नारे न होते।
तो फिर हम भी इतने बेचारे न होते।

बातों के मरहम से भर जाते शायद,
अगर ज़ख्म  दिल के करारे न होते।

है किसकी हिम्मत जो ले हमसे पंगा,
अगर हम जो आदत बिगारे  न होते।

यहाँ आबरू की ना होती तिजारत,
अगर  आकाओं के  सहारे  न होते।

कथनी और करनी ज़ुदा गर न होती,
तो  फिर  वोट के लोग  मारे न होते।

मिट जाती  कब की  ये रस्मोरिवाज़ें,
अगर  पूर्वजों  के  उतारे    न   होते।
      ---- सतीश मापतपुरी

©Satish Mapatpuri नारे

#MereKhayaal
अगर रंग - बिरंगे  ये   नारे न होते।
तो फिर हम भी इतने बेचारे न होते।

बातों के मरहम से भर जाते शायद,
अगर ज़ख्म  दिल के करारे न होते।

है किसकी हिम्मत जो ले हमसे पंगा,
अगर हम जो आदत बिगारे  न होते।

यहाँ आबरू की ना होती तिजारत,
अगर  आकाओं के  सहारे  न होते।

कथनी और करनी ज़ुदा गर न होती,
तो  फिर  वोट के लोग  मारे न होते।

मिट जाती  कब की  ये रस्मोरिवाज़ें,
अगर  पूर्वजों  के  उतारे    न   होते।
      ---- सतीश मापतपुरी

©Satish Mapatpuri नारे

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