बात है एक दिन की,तब वो दो साल की भी नहीं थी,
जब डरती न थी,अपितु मेरा डर भगाती थी।
रात दबे पाँव बढ़ रही थी,
आँखों की पुतलियाँ चढ़ रही थी,
पूरे दिन का टूटा-बिखड़ा,समेटने में
मैं भी अब लगभग थक गयी थी,
जल्दी जल्दी काम निबटा कर,
बाकी बचे को,भूल जाना चाहती थी, #Mother#yqdidi