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ग्रंथों की बातें सुनी और पोथी पढ़कर जाना है। माया क

ग्रंथों की बातें सुनी और पोथी पढ़कर जाना है।
माया की इस नगरी में,नही कोई ठिकाना है ।।
बचपन बीता आई जवानी,इसको भी तो जाना है।
क्यों कहता है मेरा-मेरा, यह जग तो वीराना है।।
आये हो,चंद रोज ठहर लो,इसको अपना जानो न।
आना-जाना लगा रहेगा, यह तो मुसाफिरखाना है।।

©Shubham Bhardwaj
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