जहां चाहा, जिधर चाहा बुलाया है मुकद्दर ने बनाया है, मिटाया है, नचाया है मुकद्दर ने शिकायत मैं न करता गर,भँवर में डूब ही जाता किनारे पर सफीना क्यूं डुबाया है मुक़द्दर ने वगरना देखो दुनिया में कई लाखों है बाशिंदे मुझे तुमसे, तुम्हे मुझ से मिलाया है मुक़द्दर ने खता लम्हों ने की थी और सदियों ने सज़ा पाई करे कोई भरे कोई सिखाया है मुक़द्दर ने मिली है मुझको जन्नत तो ,जमीं पे ही बसर करते मिरे घर इक कली को जब खिलाया है मुक़द्दर ने किसी की बूंद में गागर कोई सागर पे है प्यासा अज़ब दस्तूर जग में ये बनाया है मुक़द्दर ने किसी प्यासी जमीं को मैं नमी से आज भर दूंगा मुझे मिझ़गाँ-तरी का फन सिखाया है मुक़द्दर ने 1222*4 मुरलीधर शर्मा जी ज़मीन के एक गज़ल कहने की कोशिश की है. और एक मिसरा "खता लम्हों ने की थी और सदियों ने सज़ा पाई " मुज़फ़्फ़र रज्मी जी के एक शेर से लिया है, बेहद मामूली बदलाव से साथ उसे इस गज़ल में काम में लिया है। मिझ़गाँ-तरी ***पलकों को भिगोना त्रुटि/त्रुटियों से अवश्य अवगत कराएं । #yqdidi #bestyqhindiquotes #विशालवैद #vishalvaid #मुक़द्दर #luck #किस्मत #जिंदगी