आखिरकार जीत हो गयी उसकी वो जाति-धर्म की बात था मैं मज़हब-ए-इश्क़ था वो सामाजिक इज्जत थी मैं खुद का आत्मसम्मान था उसमे झूठ सलीका ऐंठ था मैं प्रेम से मिलता भेंट था वो उसके घमंड की दौलत थी मैं मुफ़्त में मिलता शोहरत था फिर भी, सपने टूटना तो रीत हो गयी अपनी मजबूर ये प्रीत हो गयी अपनी लो हार गए,और मान लिया हमने आखिरकार जीत हो गयी उसकी ! #NojotoQuote जीत हो गयी उसकी!