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अपनी तक़दीर को हमनें, ख़ुद कालिखों से संवारी है,

अपनी तक़दीर को हमनें, ख़ुद कालिखों से  संवारी है,
काटकर हरे भरे  जंगलों को, हम बन  बैठे व्यापारी हैं।

प्राकृतिक  संतुलन को, अस्त व्यस्त  कर दिया  हमने,
विनाशकारी लीला  प्रकृति की, ये वैश्विक महामारी है।

अपनी  करनी  पर पछताते, हाथ पैर  धुनते  रह जाते,
वजूद ख़त्म हो गया, अपने पैरों पर  कुल्हाड़ी मारी है। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-125 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
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काटकर हरे भरे  जंगलों को, हम बन  बैठे व्यापारी हैं।

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विनाशकारी लीला  प्रकृति की, ये वैश्विक महामारी है।

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