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मामूली सा ख़्वाब था मेरा, वो भी रह गया अधूरा| जात-प

मामूली सा ख़्वाब था मेरा,
वो भी रह गया अधूरा|
जात-पात,धर्म-पंत न हो कहीं भी
मिलजुलके रहे सभी,रहे जहां भी| 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-133 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 4 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
मामूली सा ख़्वाब था मेरा,
वो भी रह गया अधूरा|
जात-पात,धर्म-पंत न हो कहीं भी
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