कितनी अजीब हैँ ये मानवीय संकीर्णंता भी कि सुख आये कभी जीवन मे तो पूरा स्वयं घटक ले और जब दुख पसरने लगे तो बांटने को निकल पड़े दुख का मनोविज्ञान कहता हैँ कि दुख बांटने से दुख की गुणवत्ता बढ़ जाती हैँ और फिर उस दुख का अतिरेक उस दुखी आदमी को चाटना शुरू कर देता हैँ.............. एक तथ्य ये भी हैँ कि अगर हम दूसरे क़े सुख से सुखी हो जाए तो हमारे दुख सुनने वाला दुख की पीड़ा को अवश्य कम कर सकता हैँ सुख दुख........