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तेरा कोई अधिकार नहीं उस पर , फिर क्यों जताए फिरती

तेरा कोई अधिकार नहीं उस पर ,
फिर क्यों जताए फिरती है ?
जिस रिस्तें का कोई नाम नहीं ,
फिर उसे क्यों निभाए फिरती है ?
तू उसकी कोई है नहीं ,
फिर उसे क्यों अपना बनाए फिरती है ?
हाँ माना तुझे इश्क़ है उससे ,
फिर क्यों छुपाए फिरती है ? तेरा कोई अधिकार नहीं उस पर ,
फिर क्यों जताए फिरती है ?
जिस रिस्तें का कोई नाम नहीं ,
फिर उसे क्यों निभाए फिरती है ?
तू उसकी कोई है नहीं ,
फिर उसे क्यों अपना बनाए फिरती है ?
हाँ माना तुझे इश्क़ है उससे ,
फिर क्यों छुपाए फिरती है ?
तेरा कोई अधिकार नहीं उस पर ,
फिर क्यों जताए फिरती है ?
जिस रिस्तें का कोई नाम नहीं ,
फिर उसे क्यों निभाए फिरती है ?
तू उसकी कोई है नहीं ,
फिर उसे क्यों अपना बनाए फिरती है ?
हाँ माना तुझे इश्क़ है उससे ,
फिर क्यों छुपाए फिरती है ? तेरा कोई अधिकार नहीं उस पर ,
फिर क्यों जताए फिरती है ?
जिस रिस्तें का कोई नाम नहीं ,
फिर उसे क्यों निभाए फिरती है ?
तू उसकी कोई है नहीं ,
फिर उसे क्यों अपना बनाए फिरती है ?
हाँ माना तुझे इश्क़ है उससे ,
फिर क्यों छुपाए फिरती है ?

तेरा कोई अधिकार नहीं उस पर , फिर क्यों जताए फिरती है ? जिस रिस्तें का कोई नाम नहीं , फिर उसे क्यों निभाए फिरती है ? तू उसकी कोई है नहीं , फिर उसे क्यों अपना बनाए फिरती है ? हाँ माना तुझे इश्क़ है उससे , फिर क्यों छुपाए फिरती है ? #poem