जो कभी मेरे सपनों का, हसीन महल हुआ करता था, आज निर्जन सूनसान अवस्था में असहाय पड़ा था। रौनकें हुआ करती थी, नित जिसके महल के आँगन में, आज बियाबान में, खँडहर बनकर चुपचाप खड़ा था। इसके छत मेरी उजड़ी हुई दुनिया की दास्तां कह रही, इसके दरो दीवार खामोश होकर बदनामियाँ सह रही। जैसे मुझसे कह रहा, तुझमें और मुझमें नहीं है फर्क, तुझे भी सब यूँ ही छोड़ गए, हो चुका तेरा भी बेड़ा ग़र्क़। 👉 #collabwithपंचपोथी 👉 विषय - एक पुराना महल 👉 प्रतियोगिता- 14(मुख्य) __________________________________ 👉 समय - 24 घंटे तक 👉 collab करने के बाद comment में done लिखे 🍬 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।