यह दर्पण का महल क़ि इसमें सब प्रतिबिम्ब तुम्हारे हैँ भ्र्म के इस पर्दे में तुमने कितने रहस्य सँवारे हैँ एक पँख के साथ कहो कब विहंग भला उड़ सका गगन में दो झलकियां.....