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ए खुदा अब तू मुझपे इक आखिरी अहसान क्यों नहीं करता

ए खुदा अब तू मुझपे इक आखिरी अहसान क्यों नहीं करता 
इस जहां से नफरत है मुझे तू मेरी मोत का फरमान क्यों नहीं करता 
मेरी ज़िन्दगी की कश्ती में हजारों सुराख रोज करता है तू 
तो तू इसको डुबाने को समंदर में कोई तूफान क्यों नहीं करता तूफान
ए खुदा अब तू मुझपे इक आखिरी अहसान क्यों नहीं करता 
इस जहां से नफरत है मुझे तू मेरी मोत का फरमान क्यों नहीं करता 
मेरी ज़िन्दगी की कश्ती में हजारों सुराख रोज करता है तू 
तो तू इसको डुबाने को समंदर में कोई तूफान क्यों नहीं करता तूफान