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चादर बड़ा कीजिये और आदर बड़ा कीजिये, सब एक साथ मिल

चादर बड़ा कीजिये
और आदर बड़ा कीजिये,
सब एक साथ मिलकर
जिंदगी के मजे लीजिए,

कुंठा पाल कर लोग रहते है यहां ,
कभी अपने चाल से न हैरान कीजिये,
चार दिन की ज़िंदगी है क्या तेरा क्या मेरा
बन सका तो माहौल को आबाद कीजिये,

झूठे अहंकार में लोग पागल है यहां
आखें बंद कर के कभी तो सफ़र कीजिए,
भौतिक सुख को पाने में लगे है सारे लोग
कभी तो प्रभु के शरण में जिंदगी को बसर कीजिए।।

©Ashok Verma "Hamdard"
  जिंदगी की बाती

जिंदगी की बाती #कविता

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