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हुस्न के बाज़ार में कविता अनुशीर्षक में पढ़े 👇 एक

हुस्न के बाज़ार में

कविता अनुशीर्षक में पढ़े

👇 एक दुपट्टे से बांधते है
अपनी बहन बेटियों की इज्जत जो
अच्छी नही लगती मैं उन्हें सूट सलवार में
निर्लज्ज और बेहया कहते है वही लोग
जो नग्न होते है मेरे दरबार में
रंडी , छीनार और न जाने किस किस नाम से नवाज़ते है मुझे वो लोग
जो कई गलियों से छुपते छुपाते नजरे बचाते 
आते है मेरे हुस्न के बाजार में
हुस्न के बाज़ार में

कविता अनुशीर्षक में पढ़े

👇 एक दुपट्टे से बांधते है
अपनी बहन बेटियों की इज्जत जो
अच्छी नही लगती मैं उन्हें सूट सलवार में
निर्लज्ज और बेहया कहते है वही लोग
जो नग्न होते है मेरे दरबार में
रंडी , छीनार और न जाने किस किस नाम से नवाज़ते है मुझे वो लोग
जो कई गलियों से छुपते छुपाते नजरे बचाते 
आते है मेरे हुस्न के बाजार में