इंकलाब आएगा बेशक(stet2019) ================= ये दर्द अब सहने के काबिल नहीं है अपनी मेहनत का कोई हासिल नहीं है सोच़ता था कत्ल कैसे करेगा ये भला ये मासुम सुरत बिल्कुल कातिल नहीं है जब सुना जह़र आलुद मीठी बोली को कल हो गया मुझको यकी ये बंदा फाज़िल नहीं है दूर चल रुक नहीं पार कर तु फासला है यहां फरेबी लहर अपना साहिल नहीं है बेशक तु भरमाने की कोशिश पूरी कर पर ये रख पुरा यकीं यां कोई जाहिल नहीं है दर बदर की ठोकरे खाता रहा हूं आजतक मंजिल पे आकर ये सुना ये मंजिल नहीं है इंकलाब आएगा बेशक खुन को जा़या न कर जो मिला है निस्फ है ये कामिल नहीं है ©Qamar Abbas #STET2019