क्यों बातें बड़ी बड़ी है दिल छोटा तेरे शहर में? ज़ख्म कुरेदता बेरहम सा हर बाशिंदा तेरे शहर में। हैसियत हमारी भी कभी आसमां के भाव रही, पंख टूटा कौड़ी के दाम मरा ये परिंदा तेरे शहर में? तेरी मुहब्बत में भी कभी क्या कोई सच्चाई रही? दिल आयना मेरा फ़िर भी न कोई शर्मिंदा तेरे शहर में। न कोई सुनता, न बढ़ आगे कोई देखे है मुड़कर, मरी हुई है रूह क्या कोई ख़ाक ज़िन्दा तेरे शहर में? करोगे पुकार तो ख़ाली हाथ लौट आएँगी सदाएं, अब लाख़ बुलावे पे भी न आऊँ आइंदा तेरे शहर में। ♥️ Challenge-805 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।