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दोस्त इतनी जद्दोजहद रही जिंदगी में पता ही नहीं चला

दोस्त इतनी जद्दोजहद रही जिंदगी में
पता ही नहीं चला हम बचपन से कब निकले

 सरपट दौड़ लगाता यौवन कब निकल गया हाथों से 
पचपन पार होते होते बात मन की भी कहना भूले 

अब निकले तब निकले जाने ना
थकी हारी सी सांस मेरी कब निकले 












सपनों के हिंडोले के लगातार रहे तार टूटते 
उलझे उलझे रिश्तों से सुलझे किस्से कब निकले
बबली गुर्जर

©Babli Gurjar
  उलझे उलझे
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Babli Gurjar

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उलझे उलझे #शायरी

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