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प्रिय मित्रों,         जय  श्री राम!           आ

प्रिय मित्रों,

        जय  श्री राम!

          आप वास्तव में श्री शिवजी की मूर्ति ही हैं। इस भाव का अनुभव आप तभी कर सकते हैं, जब सच्चे एवं पक्के स्वार्थी या परमार्थी दोनों में से कोई भी भाव स्थायी रूप से धारण कर लें। इस भाव को धारण करने की शक्ति (धृति) आपके इस मित्र के द्वारा मुफ्त में उपलब्ध करा दी जाएगी, मात्र दृढ़ संकल्प आपको करना है। आपका यह मित्र जगत में कोई प्रस्ताव देने का अधिकारी तो नहीं रहा, फिरभी प्रभु के प्रेरणा से मार्गदर्शन अवश्य प्रदान कर सकता है। मित्र! छल-कपट का परित्याग करके इस भाव को अपनी धारणा में स्थिर कर लें, कि मन, वाणी एवं कर्म से श्री रामजी के चरणों में दृढ़ अनुराग हो जाना- यहीं सबसे बड़ा जीव का स्वार्थ है।

स्वारथ साँच जीव कहुँ एहा। मन क्रम बचन राम पद नेहा।।

        

        मनुष्य जन्म एवं जीवन का सारों में से एक सार यह भी है कि- सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मात्र वही शरीर पवित्र और सुन्दर है, जिस शरीर को पाकर जीव श्री रघुवीर का भजन करे- भाव यही है कि श्री रामजी के मार्गदर्शन के अनुसार जगत में आचरण करें। 

सोइ पावन सोइ सुभग सरीरा। जो तनु पाइ भजिअ रघुबीरा।।


        इस दिव्य कर्म में अविद्याजनित- अहंकार, आक्रोश, आसक्ति, अभिमान, स्वार्थ, मोह-ममता एवं कुटिलता आदि दुर्भावना का एक श्वाँस में भी स्थान हो ही नही सकता। इसलिए यह दिव्य है। श्रद्धा के साथ इसका आत्मसात कर लीजिएगा  जय श्री राम!

डॉ रवि शंकर पाण्डेय

©डॉ रवि शंकर पाण्डेय 8 अरब मित्रों से विनम्र निवेदन

https://drive.google.com/drive/folders/1JPKG9fnw1BI1ran-qS10zvnLGm6njOpe
प्रिय मित्रों,

        जय  श्री राम!

          आप वास्तव में श्री शिवजी की मूर्ति ही हैं। इस भाव का अनुभव आप तभी कर सकते हैं, जब सच्चे एवं पक्के स्वार्थी या परमार्थी दोनों में से कोई भी भाव स्थायी रूप से धारण कर लें। इस भाव को धारण करने की शक्ति (धृति) आपके इस मित्र के द्वारा मुफ्त में उपलब्ध करा दी जाएगी, मात्र दृढ़ संकल्प आपको करना है। आपका यह मित्र जगत में कोई प्रस्ताव देने का अधिकारी तो नहीं रहा, फिरभी प्रभु के प्रेरणा से मार्गदर्शन अवश्य प्रदान कर सकता है। मित्र! छल-कपट का परित्याग करके इस भाव को अपनी धारणा में स्थिर कर लें, कि मन, वाणी एवं कर्म से श्री रामजी के चरणों में दृढ़ अनुराग हो जाना- यहीं सबसे बड़ा जीव का स्वार्थ है।

स्वारथ साँच जीव कहुँ एहा। मन क्रम बचन राम पद नेहा।।

        

        मनुष्य जन्म एवं जीवन का सारों में से एक सार यह भी है कि- सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मात्र वही शरीर पवित्र और सुन्दर है, जिस शरीर को पाकर जीव श्री रघुवीर का भजन करे- भाव यही है कि श्री रामजी के मार्गदर्शन के अनुसार जगत में आचरण करें। 

सोइ पावन सोइ सुभग सरीरा। जो तनु पाइ भजिअ रघुबीरा।।


        इस दिव्य कर्म में अविद्याजनित- अहंकार, आक्रोश, आसक्ति, अभिमान, स्वार्थ, मोह-ममता एवं कुटिलता आदि दुर्भावना का एक श्वाँस में भी स्थान हो ही नही सकता। इसलिए यह दिव्य है। श्रद्धा के साथ इसका आत्मसात कर लीजिएगा  जय श्री राम!

डॉ रवि शंकर पाण्डेय

©डॉ रवि शंकर पाण्डेय 8 अरब मित्रों से विनम्र निवेदन

https://drive.google.com/drive/folders/1JPKG9fnw1BI1ran-qS10zvnLGm6njOpe