कैसी तलब-ए-जुनूँ है हमें तेरी मुहब्बत की पर जुटा तो हम कब से तेरी जुदाई रहे...... तू नाराज़ इस क़दर हुयी है हमसे देख ये भी तू नहीं बल्कि____ तेरे आंगन में बजती ये शहनाई बता रहे...... राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी ©मेरी दुनियाँ मेरी कवितायेँ शहनाई