❤️ग़ज़ल❤️ बहुत बीमार रहने लग गया हूॅं! मैं नींदों में भी चलने लग गया हूॅं!! --- चला था ज़िंदगी भर बिन थके ही! मग़र इकपल में थकने लग गया हूॅं!! --- मुझे पाला था भीषण ऑंधियों ने! हवाओं से भी डरने लग गया हूॅं!! --- बहुत तुम बोलते हो, सब थे कहते! मग़र चुपचाप सुनने लग गया हूॅं!! --- सुबह होते ही खिड़की खोलता जब! उजालों से भी बचने लग गया हूॅं!! -#भूषण- ©Vidya Bhushan Mishra #RakshaBandhan2021