वो सारे शहर की भूख मिटा देता है अपने उगाए दानों से, लोग कहते हैं हम देते हैं टैक्स, क्या लेना हमें किसानों से।। टैक्स देते हो जरूर तुम, करते नहीं अहसान कोई, रहते हो जिस देश में, क्या उसपर करते अहसान कोई, ये अचल धरा है, हल चलाकर तो देखो, किसानी होती कैसे है खेतों में जाकर देखो। वो बहाकर पसीना उगाता है धान, देता है वो अपना सर्वस्व, तब जाकर कहीं बन पाया यह देश महान। भूखे मर रहे थे कभी, तब नहीं आया कोई आगे, तब निकला हल लेकर खेतों में, मिटाने भूख तुम्हारी,वह था ये किसान, आज बताते हो आतंकी इन्हें, कैसे बन गए तुम इतने निर्लज्ज इंसान।। खाकर अन्नदाता का उगाया धान, इन्हें ही देते ताने, कभी तो लड़ो इनके हक के लिये, या बने रहोगे हमेशा यूँ ही अहसान फरामोश, इतनी भी गैरत नहीं रही तुझमें, या बेच आया खुद को ओ इंसान।। ©दुर्गमेघजैसलमेर777 #किसान_आंदोलन #farmersprotest Roshni Bano ✍ *Ruchi* ki kalam se✍ Anshu writer