चंद दिनों पहले मैंने एक रचना पढ़ी थी। आषाढ़ का एक दिन, महाकवि कालिदास के निजी जीवन के ऊपर। उसमें एक लड़की रहती है मल्लिका। मेरे जीवन में भी एक लड़की है मल्लिका, महाकवि कालिदास ने तो मल्लिका के ऊपर कुछ लिखने की चेष्टा की पर वो लिख नहीं पाए तो हमारी क्या हस्ती है कि मैं अपने जीवन के मल्लिका के ऊपर कुछ लिख सकूं। पुरुष एक भंवरा कि भांति है जो कि शहद के तलाश में अनेक फूलों पर बैठता है, परन्तु अंत में उसे आभास होता है कि जिसकी तलाश में वो दर बदर भटक रहा वो उसके घर के पास था। हम भी भटक गए मल्लिका से तो, हमारे जीवन की जो मल्लिका हैं वो हैं आकांक्षा पाठक, मैं भटक रहा हूं प्रेम, प्रतिष्ठा, धन की तलाश में। परन्तु वो मल्लिका मुझसे ऐसे प्रेम करती है कि उसने मुझे मुक्त कर रखा है, भटकने को। वो मेरी सारी रचना पढ़ती है, रोती है, कलपती है। अपने अंदर के दर्द को बाहर नहीं आने देती। कभी शिक़ायत नहीं करती। कभी कभी मुझे लगता है कि जब मैं शांति की तलाश में सब जगह से थक हार जाऊंगा तो वो मुझे आश्रय देगी। वो मुझे समझेगी, वो मुझे ताना नहीं मारेगी, वो मुझे वैसा ही प्यार करेगी जैसा करते अाई है, पर शायद वो समाज के दायरे में तब तक बंध जाए। पर एक बात तो तय है कि वो रचनाकार है, सृजनकार है मुझसे बड़ी पर भावनाओं को रोक रखा है। #love #lovestory #oldlove #lovequotes