"वृद्ध और आश्रम" जिन्दगी के हर मोड़ पर उनको ख्वाब बदलते देखा है, वो ज़रा ज़ईफ(बूढ़े)क्या हुए उनके औलाद बदलते देखा है। खर्च कर दी जिसने जिंदगी और उम्र भर की कमाई, कभी मालिक की घुड़कियां सुनते, कहीं मंदिर-मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठ बिलखते उस भगवान को देखा है। आश्रम के दरवाजे पर Benz, Audi, Skoda जैसी कार रुकते भी देखा है, व्यापार के लोभ में ज़िंदा लाशों को जलते देखा है। सच कहूं, इंसान रूपी संतानों को हैवान बदलते देखा है, ज़रा ज़ईफ क्या हुए उनकी औलाद बदलते देखा है। -Rehan Fazal....