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पेज-29 कथाकार एक बार फिर रत्नाकर कालोनी के प्रेम स

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कथाकार एक बार फिर रत्नाकर कालोनी के प्रेम स्नेह के समक्ष नतमस्तक हुआ-यही घटना यथार्थ मे कुछ और हो सकती थी...लेकिन अपने भाई अपने बेटे के लिये पुष्पा जी का आत्मीय प्रेम देखिये... उनकी नजरों मे ज्यों ही एक सुकन्या दिखी वो अब कुछ भूलकर कैसे भी उस तक पहुंचने को आतुर हो गये.. यद्द्पि यथार्थ में पुष्पा जी अपना प्रत्येक निर्णय अपने बौद्धिक स्तर एवं अनुभवों के आधार पर लेते होंगे.. खैर यहाँ तो भ्रातत्व प्रेम की बात होगी... पुष्पा जी ने ज्यों ही देखा अपनी सखियों को आवाज लगाई.. सखियाँ भी अपने हाथ का काम छोड़कर उसके साथ दौड़ पड़ीं... उन्हें दौड़ते देख एक के बाद एक पूरी कालोनी दौड़ पड़ी..! क्यूँ दौड़ पड़ी पूरी कालोनी साहब..! इसीलिये क्यूंकि सबको एक दूसरे की फिक्र खुद से कहीं ज्यादा थी तभी तो जो जिस हाल में था वैसे ही दौड़ गया...!
मंदिर में आकर सबने उस सुकन्या को देखा सब मन ही मन प्रसन्न भी हुये ये सोचकर कि उनका दौड़ना सार्थक रहा.. एक बहन की कोशिश थी अपने भाई के लिये सर्वगुण सम्पन्न जीवनसंगिनी तलाशने की.. वही उसने किया.. यही है "भाव" कहते हैं-"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखि तैसी.."
इसी भावना की प्रधानता ने सबकी थकान मिटाकर सबके चेहरों मे एक भीनी सी मुस्कान बिखेर दी.. आइये अब चलते हैं मानक के घर जहाँ मेहमान आने वाले हैं...
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©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी 

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कथाकार एक बार फिर रत्नाकर कालोनी के प्रेम स्नेह के समक्ष नतमस्तक हुआ-यही घटना यथार्थ मे कुछ और हो सकती थी...लेकिन अपने भाई अपने बेटे के लिये पुष्पा जी का आत्मीय प्रेम देखिये... उनकी नजरों मे ज्यों ही एक सुकन्या दिखी वो अब कुछ भूलकर कैसे भी उस तक पहुंचने को आतुर हो गये.. यद्द्पि यथार्थ में पुष्पा जी अपना प्रत्येक निर्णय अपने बौद्धिक स्तर एवं अनुभवों के आधार पर लेते होंगे.. खैर यहाँ तो भ्रातत्व प्रेम की बात होगी... पुष्पा जी ने ज्यों ही देखा अपनी सखियों को आवाज लगाई.. सखिय
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कथाकार एक बार फिर रत्नाकर कालोनी के प्रेम स्नेह के समक्ष नतमस्तक हुआ-यही घटना यथार्थ मे कुछ और हो सकती थी...लेकिन अपने भाई अपने बेटे के लिये पुष्पा जी का आत्मीय प्रेम देखिये... उनकी नजरों मे ज्यों ही एक सुकन्या दिखी वो अब कुछ भूलकर कैसे भी उस तक पहुंचने को आतुर हो गये.. यद्द्पि यथार्थ में पुष्पा जी अपना प्रत्येक निर्णय अपने बौद्धिक स्तर एवं अनुभवों के आधार पर लेते होंगे.. खैर यहाँ तो भ्रातत्व प्रेम की बात होगी... पुष्पा जी ने ज्यों ही देखा अपनी सखियों को आवाज लगाई.. सखियाँ भी अपने हाथ का काम छोड़कर उसके साथ दौड़ पड़ीं... उन्हें दौड़ते देख एक के बाद एक पूरी कालोनी दौड़ पड़ी..! क्यूँ दौड़ पड़ी पूरी कालोनी साहब..! इसीलिये क्यूंकि सबको एक दूसरे की फिक्र खुद से कहीं ज्यादा थी तभी तो जो जिस हाल में था वैसे ही दौड़ गया...!
मंदिर में आकर सबने उस सुकन्या को देखा सब मन ही मन प्रसन्न भी हुये ये सोचकर कि उनका दौड़ना सार्थक रहा.. एक बहन की कोशिश थी अपने भाई के लिये सर्वगुण सम्पन्न जीवनसंगिनी तलाशने की.. वही उसने किया.. यही है "भाव" कहते हैं-"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखि तैसी.."
इसी भावना की प्रधानता ने सबकी थकान मिटाकर सबके चेहरों मे एक भीनी सी मुस्कान बिखेर दी.. आइये अब चलते हैं मानक के घर जहाँ मेहमान आने वाले हैं...
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©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी 

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कथाकार एक बार फिर रत्नाकर कालोनी के प्रेम स्नेह के समक्ष नतमस्तक हुआ-यही घटना यथार्थ मे कुछ और हो सकती थी...लेकिन अपने भाई अपने बेटे के लिये पुष्पा जी का आत्मीय प्रेम देखिये... उनकी नजरों मे ज्यों ही एक सुकन्या दिखी वो अब कुछ भूलकर कैसे भी उस तक पहुंचने को आतुर हो गये.. यद्द्पि यथार्थ में पुष्पा जी अपना प्रत्येक निर्णय अपने बौद्धिक स्तर एवं अनुभवों के आधार पर लेते होंगे.. खैर यहाँ तो भ्रातत्व प्रेम की बात होगी... पुष्पा जी ने ज्यों ही देखा अपनी सखियों को आवाज लगाई.. सखिय

#रत्नाकर कालोनी पेज-29 कथाकार एक बार फिर रत्नाकर कालोनी के प्रेम स्नेह के समक्ष नतमस्तक हुआ-यही घटना यथार्थ मे कुछ और हो सकती थी...लेकिन अपने भाई अपने बेटे के लिये पुष्पा जी का आत्मीय प्रेम देखिये... उनकी नजरों मे ज्यों ही एक सुकन्या दिखी वो अब कुछ भूलकर कैसे भी उस तक पहुंचने को आतुर हो गये.. यद्द्पि यथार्थ में पुष्पा जी अपना प्रत्येक निर्णय अपने बौद्धिक स्तर एवं अनुभवों के आधार पर लेते होंगे.. खैर यहाँ तो भ्रातत्व प्रेम की बात होगी... पुष्पा जी ने ज्यों ही देखा अपनी सखियों को आवाज लगाई.. सखिय #प्रेरक