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अनगिनत सभ्यताओं के बीच आज भी "स्त्री "सभ्यता अधूरी

अनगिनत सभ्यताओं के बीच
आज भी "स्त्री "सभ्यता अधूरी है

जिसे किसी ने ढूँढा नहीं 
बस रेंगते रहे उनके आकर्षित 
प्रतिबिम्ब पर 

अगर हामी भरी तो बताओ 

क्या समझे 
इनके कठोर कटिले नयन की
अनसुलझी बातो का तथ्य 

क्या समझे 
घूंघट की परत दर परत बसाये 
संस्कार के बहरूपिये मंशे

क्या समझे 
होंठो के चुप्पी मे समाधि ली हुई 
जीभा की असंख्य कौतुहल 

तुम्हें क्या पता है???? 
छोड़ो
नहीं समझोगे 

"स्त्री "के हृदय के खाँचे खाँचे से कुरेदा गया रूह
जहां के मिट्टी मे सभ्यता के कमी से लाश के सड़ने की 
अब बू आ रही है 

बेशक..... तुम समेट नहीं सकोगे उसके 
बदबू को !!

©चाँदनी
  बेशक...तुम समेट नहीं सकोगे उसको!!

बेशक...तुम समेट नहीं सकोगे उसको!! #Shayari

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