हरे छीट की चुनरी डाले ,पीला है परिधान । रंग बिरंगें फूल केश में , जैसे है गुलदान । आयी गोरी ऐसे जैसे , जैसे माघ बसंत जिसे देख के कहता मैं भी , कुदरत का वरदान ।। हरे छीट की चुनरी डाले ........ छमक छमक के उछल उछल के , जब चलती है चाल । पायल कंगन सब गातें हैं , गालों में है ताल । मीठे मीठे बोल बोलती , ले कोयल से तान ललक जगी है पिया मिलन की , करती काम महान ।। हरे छीट की चुनरी डाले ...... महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हरे छीट की चुनरी डाले ,पीला है परिधान । रंग बिरंगें फूल केश में , जैसे है गुलदान । आयी गोरी ऐसे जैसे , जैसे माघ बसंत जिसे देख के कहता मैं भी , कुदरत का वरदान ।। हरे छीट की चुनरी डाले ........ छमक छमक के उछल उछल के , जब चलती है चाल । पायल कंगन सब गातें हैं , गालों में है ताल ।