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मंजर बुझे बुझे से हैं, अरमान जल रहे हैं। महफिल में

मंजर बुझे बुझे से हैं, अरमान जल रहे हैं।
महफिल में आये सारे मेहमान चल रहे हैं।।
एहसास जबसे दिल के,मेरे होठों पर आये हैं।
आँखों से सितमगर, सितम खुलेआम कर रहे हैं।।
आँखों में आये आँसुओं को,कभी गिरने नही देना।
मोहब्बत की आड़ में,अजीब सा पैगाम कर रहे हैं।।
क्या रोकना उन्हें जो तलबगार हैं मोहब्बत के।
राहे मोहब्बत में तो वह बस एहसान कर रहे हैं।।

©Shubham Bhardwaj
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