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"कबीर" कागा का को धन हरे, कोयल का को देय । मीठे

"कबीर"

कागा का को धन हरे, कोयल का को देय ।

मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ।


भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि कौआ किसी का धन नहीं चुराता लेकिन फिर भी कौआ लोगों को पसंद नहीं होता। वहीँ कोयल किसी को धन नहीं देती लेकिन सबको अच्छी लगती है। ये फर्क है बोली का – कोयल मीठी बोली से सबके मन को हर लेती है।













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