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// सच्चा प्यार ढूॅंढती हूॅं // जो दिल की तपिश को

// सच्चा प्यार ढूॅंढती हूॅं //

जो दिल की तपिश को बुझाए ऐसा जलधार ढूॅंढती हूॅं 
सावन की आग को भी जो बुझा दे वो फुहार ढूॅंढती हूॅं ।

जन्मों जन्म का बन जाए रिश्ता जो जुड़े तो फ़िर न टूटे
लाखों-हजारों में बस एक ऐसा ही सच्चा प्यार ढूॅंढती हूॅं।

सब यहाॅं अपने बनने का दिखावा कर छल जाते पल भर में 
तीरगी में जो परछाई बन साथ दे ऐसा ईमानदार ढूॅंढती हूॅं।

साॅंसों का भी क्या करूॅं भरोसा जाने कब कर जाए दगा
साॅंसों से ज़्यादा एतबार हो जिसपे वो वफ़ादार ढूॅंढती हूॅं।

बेझिझक बयाॅं कर दूॅं हाल-ए-दिल उससे, ऐसा हो यकीं 
जो मेरी खामियों पे डाल सके पर्दा ऐसा राज़दार ढूॅंढती हूॅं।

सपनों सा राजकुमार कोई आ जाए रूबरू चाहे 'अर्चना'
हुक़ूमत जिसके दिल पे कर सकूॅं ऐसा दिलदार ढूॅंढती हूॅं।

©Archana Verma Singh
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