खुद को पाने में अक्सर कुछ भूल जाता हूँ खुद को समेटने की जल्दी में बेतरतीब सा रह जाता हूँ मंजिल रहता है नजर के सामने फिर न जाने क्यों रास्ता ही भूल जाता हूँ जीतना कौन नहीं चाहता है भला मैं बस जीतते-जीतते रह जाता हूँ ढूँढने निकलता हूँ कुछ और ही पा कुछ और ही लेता हूँ ज़िन्दगी अपनी साँप-सीढ़ी का खेल ही बन बैठी है और वो 99 पे बैठा साँप अक्सर काट लेता है मुझे और फिर से एक नई शुरआत करने मैं अपनी ज़िंदगी पे दांव लगाता रह जाता हूँ लिखना चाहता हूँ अपनी कहानी पर बोतल की स्याही कागज पर उड़ेल ही नहीं पाता हूँ थोड़ा नाम बने, इस कोशिश में आखिर गुमनाम ही रह जाता हूँ--अभिषेक राजहंस #NojotoQuote गुमनाम