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कदम दो चार चलता हूँ, मुकद्दर रूठ जाता है, हर इक उम

कदम दो चार चलता हूँ,
मुकद्दर रूठ जाता है,
हर इक उम्मीद से
रिश्ता हमारा टूट जाता है,
जमाने को सम्भालूँ गर
तो तुमसे दूर होता हूँ,
तेरा दामन सम्भालूँ तो,
जमाना छूट जाता है ।
शायर. Hiamnshu

©Himanshu Dahiya
  “ज़रूर कुछ तो बनाएंगी ज़िन्दगी मुझको !
 क़दम क़दम पर मेरा इम्तिहान लेती है !!”
💔✍🏼😰😭

“ज़रूर कुछ तो बनाएंगी ज़िन्दगी मुझको ! क़दम क़दम पर मेरा इम्तिहान लेती है !!” 💔✍🏼😰😭 #शायरी

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